- 63 Posts
- 78 Comments
एक समाज विशेष ने तो भगवान् जी को इच्छापूर्ति की मशीन बना लिया है.
आप ने भी संभवतः लोगों को कहते सुना होगा – ” ठाकुर जी दुकान चालासी…”, ” ठाकुर जी बिक्री करासी…”, “ठाकुर जी वर्षा करसी…., “भण्डार भरपूर राखसी….”, लक्ष्मी जी लाभ मोकलो देसी….”…आदि…आदि ……..सारे दिन भर लूट- पात, ईर्षा-द्वेष, गला काटना…और शाम को सवा का प्रसाद भोग लगा दिया…क्या यही आध्यात्म है ????
रूहानियत में जाना है तो सबसे पहले ये मान कर चलिए कि अध्यात्म अलग है और भौतिकवाद अलग. तब ही अंड-पिंड सिद्धांत समझ आएगा और तभी अध्यात्म का असली मज़ा आएगा भैया.
प्रारब्ध, क्रियमाण कर्म और पुरुषार्थ जब तक इनको समझा नहीं जाएगा कुछ पल्ले नहीं परेगा. बस इतना जान लीजिये कि न तो अकेले भाग्य से कुछ मिलेगा नहीं अकेले पुरुषार्थ से. यदि कर्म करने से ही मिला होता तो मजदूर अथवा गधे से अधिक हम नहीं कर सकते, ये सब टाटा-बिरला होते. खूब गुणन-मनन करें. बौद्धिक चर्चा में जाना है ???
तो लोगिन करे : www .astrotantra4u .com
Gopal Raju
Scientist, Writer & Occultist
Read Comments