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|| स्वप्न दमित इच्छाओं की परिणति हैं ||

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स्वप्न दमित इच्छाओं की परिणति हंै, यह सत्य है। परन्तु मिथ्या यह भी नहीं है कि उनमें भविष्य सूचक अनेक प्रत्यक्ष और परोक्ष संकेत छिपे हुए हैं। यदि उन्हें भलिभांति समझा और जाना जा सके तो कितने ही प्रकार से लाभान्वित हुआ जा सकता है और अन्यों केा भी लाभ पहॅुचाया जा सकता है। आए दिन अनुभव में आने वाले स्वप्न दर्षन और उनके शुभाषुभ फल विचार इसके साक्षी हैं।
रात्रि की नीरवता हो या दिन की शान्ति, इस स्थिति में चेतना जब निद्राकाल में षिथिल पड़ती है और उत्तेजना रहित होती है तो प्रकृति के गर्भ में पल रहे घटना क्रमों को पकड़ने की क्षमता अर्जित कर लेती है। इसी को समय-समय पर संकेतों के माध्यम से प्रकट भी कर देती है। इसलिए सपने सदा निरर्थक तथा निरुदेष्य नहीं होते। कितनी ही बार उनमें सार्थक संकेत भी छिपे होते हैं, इस तथ्य को आज विष्व स्तर पर स्वीकार कर लिया गया है।
वराहमिहिर ने स्वप्न फल प्राप्ति का समय स्पष्ट किया है। रात्रि के पहले भाग में जो स्वप्न आता है वह वर्ष पूरा होने पर अपना फल देता है। दूसरे भाग का स्वप्न छः माह में अपना फल देता है। रात्रि के तीसरे भाग का स्वप्न तीन माह में फलीभूत होता है। रात्रि के चैथे भाग अर्थात् रात्रि के अंत में जो स्वप्न आता है वह तत्काल अपना फल देता है। वृहत् यात्रा ग्रंथ में लिखा है कि यदि एक ही रात में अच्छे और बुरे दोनों स्वप्न दिखाई दें तो केवल पीछे वाला स्वप्न ही अपना शुभाषुभ फल दिखाता है। दिन के समय दिखाई देने वाला स्वप्न अधिकांषतः अपना कोई भी फल नहीं देता।
स्वप्न शास्त्र के मूल गं्रथों का यदि अध्ययन करें तो सपनों को कुल सात प्रकार की श्रेणियोें में रखा जा सकता है। 1. दृष्ट 2. श्रुत 3. अर्थभूत 4. प्रार्थित 5. कल्पित 6. भावित 7. दौषज। देखा जाए तो इनमें से प्रथम पांच प्रकार के सपनों का कोई भी शुभाषुभ फल नहीं होता। परंतु शेष दो भावित और दौषज श्रेणी के स्वप्न अपना कुछ न कुछ प्रभाव अवष्य दिखाते हैं।
भावित स्वप्न वह हैं जो शुद्ध और सात्विक प्राणियों को देवलोक स्वतः प्रत्यक्ष रुप से शुभ फल का संकेत देते हैं। वस्तुतः यहां काल ही भविष्य में होने वाले शुभाषुभ फल बताने के लिए स्वप्न रुप धारण करता है। जो विषय कभी भी ध्यान में न आया हो उससे संबन्धित स्वप्न भावित माने गये हैं। यह देवकृत हैं, इनका शुभ अथवा अषुभ फल देर-सवेर मिलता अवष्य है। फलाफल का घटित होना अधिकांषतः इस बात पर निर्भर करता है कि उस काल में व्यक्ति विषेष के ग्रहों की दषा-अन्तर्दषा आदि की बलाबल के अनुरुप क्या स्थिति है। योग्य स्वप्न विचार विषेषज्ञ फलादेष से पूर्व ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति का अवलोकन अवष्य करता है।
सत्तर से अधिक प्रतिषत के स्वप्न दौषज श्रेणी में आते हैं। इनका फल भी अधिकांषतः फलित नहीं होता। अनिद्रा, अस्वस्थ शरीर, दिन के समय दिखाई देने वाले स्वप्न, ऐसे सपने जिनका न कोई सिर है न कोई पैर आदि से संबन्धित सपने इसी श्रेणी में आते हैं जो निद्रा से जगने के बाद सामान्यतः याद भी नहीं रहते।
स्वप्न विचार ग्रंथों में लिखा है कि अरुचिकर, डरावने अथवा अन्य किसी भी प्रकार दुस्वप्न निद्रा से उठने के बाद किसी को भी नहीं बताने चाहिए। यदि ऐसे स्वप्न आएं तो गंगा जल सेवन करके पुनः सो जाना चाहिए। प्रातः सर्वप्रथम गाय, मोर, देवालय, सौभाग्यषाली नहाई-धोई श्रंृगारयुक्त स्त्री, सात्विक और पूजा-पाठी ब्राह्मण आदि के दर्षनों से ऐसे सपनों का दुष्प्रभाव स्वतः ही समाप्त हो जाता है। सत्कर्मी ब्राह्मण को सर्वप्रथम यदि ऐसे सपने बोल दिए जाएं तब भी उनका दुष्प्रभाव निष्क्रिय हो जाता है। यदि कोई भी साधन न बन पड़े तो उठते ही ऐसे सपनों को शौचालय में बोल देना चाहिए, इससे भी अनर्थ की संभावना समाप्त हो जाती है। अषुभ स्वप्न के दुष्प्रभाव से यदि अकारण भय उत्पन्न हो रहा है तो प्रातः नहा-धोकर तिल से अग्नि में होम करना लाभदायक सिद्ध होता है। सुपात्र को यथा श्रद्धाभाव और सामथ्र्य दान कर देने से भी अषुभता की संभावना कम होने लगती है।
सौभाग्य से यदि चित्त को सुखद लगने वाले अर्थात् किसी प्रकार के अच्छे सपने दिखाई दें तो उनको सदा गुप्त रखना चाहिए क्योंकि इसमें ही शुभता का भेद छिपा है। संभव हो तो निद्रा त्याग कर ऐसे सपनों को सिद्ध करने के लिए नियमानुसार और शास्त्रोक्त क्रम-उपक्रम कर लेना चाहिए। सपनों में दृष्ट सत्पुरुष अथवा दुष्ट जनों को यदि श्रम से उनका नाम बोल कर सिद्ध कर लिया जाए तो मानव कल्याण के लिए अनेकानेक लाभ उठाए जा सकते हैं।
कुछ अच्छे-बुरे सपनों का एक अत्यंत संक्षिप्त विवरण यहाॅ लिख रहा हॅू – अपने बुद्धि-विवेक से इन सब से लाभ उठाएं।
अपने को जलना, इंद्र ध्वज को छूना, जल में विहार करना, आग खाना, हाथी से डरना, सदाचारी ब्राह्मण देखना, चंद्र तथा सूर्य को खंडित देखना, गाय का दूध निकलते देखना, संुदर स्त्री को अपने में समाना, अपने शरीर पर घास, वृक्ष, फूल, जल देखना, पर्वत को उखाड़ना, सूर्य, चंद्र, पृथ्वी, नक्षत्रादि का भक्षण करना, बेल, पर्वत, हाथी, घोड़े, सिंह पर चढ़ना, समुद्र पा लेना, उजला घोड़ा, फल, ध्वजा, छत्र, चामर, कमल, मणियाॅ आदि स्वप्न नौकरी, उन्नति, व्यापार में लाभ आदि संबंधि शुभ फल देते हैं।
जीव से आकाष को चूमना भूमि-भवन का सुख देता है। किले पर चढ़ना, तलवार, कवच आभूषण के लाभ तथा शत्रुओं पर विजय कराता है। देवता, गुरु, धनाढ्य, सिद्ध पुरुष, ब्रह्माण, आचार्य, श्वेत पुष्प, पुष्प वन, आग को बुझते देखना, नवीन गृह प्रवेष, सुसज्जित शैया, आसन, शरीर का दाह, देह में लेपन, सोमरस पान, अगम्या स्त्री रमण, वयोवृद्ध, केष, दाढ़ी, नख, रोम आदि स्वप्न दर्षन मनोवांछित फल की प्राप्ति करवाते हैं। सिंह, व्याघ्र, घोड़ा, भालू, पुष्पमाला, वीणा, पादुकाएं, बकरा सपने में दिखाई दें तो स्त्री का सुख मिलता है। बिच्छू, मणि, सोने का दीपक, हाथी, घोड़ा, हंस, साॅप का बच्चा दर्षन पुत्र सुख देते हैं। श्वेत पुष्प माला धारण करना, श्वेत वस्त्र, चंद्र, सूर्य नक्षत्र भक्षण, शत्रु बध देखना लक्ष्मी प्राप्ति का संकेत देते हैं। अपने सिर को कटते देखना, राज्याभिषेक होना, अपने को मृत देखना, आग अथवा घर को जलते देखना, जल में तैरना। हथिनी, घोड़ी, गाय का अपने घर में प्रसव देखना और इन सब का रोदन सुनना शुभकारक सिद्ध होता है। सुन्दरी, मैल का शरीर में लगना, देव तीर्थ, जलाषय देखना धन का लाभ करवाते हैं। रोगी मनुष्य का सपना व्याधि से छुटकारा दिलवाता है। यदि सपने में साॅप काट ले तो कार्य सिद्धि का संकेत मिलता है।
अनर्थ कारक कुछ सपने निम्न प्रकार के होते हैं।
नाभि को छोड़कर अन्य अंग में वृक्ष उगना, मुंडन, नग्नता, मैला वस्त्र, तेल, अपने को कीचड़ में सना हुआ देखना, ऊॅचाई से गिरना, पालकी पर चढ़ना, घोड़े को मारना, कमल, लोहा, लाल पुष्प, लाल वृ़क्ष, चांडाल, सुअर, भालू, गधा, ऊंट पर चढ़ना, पका मांस खाना, तेल पीना, सत खिचड़ी खाना, हंसना, विवाह, गाना, नीचे उतरना, गोबर मिले जल से स्नान करना, सूर्य, चंद्र को गिरते देखना, कुंआरी का अलिंगन, पुरुष मैथुन, अपने अंग की हानि होना, दक्षिण दिषा को जाना, घर का गिरना, सफाई करना, गेरुआ वस्त्र धारण करना, लाल लेपन का सेवन सब बुरा फल देते हैं। हिरण, सुअर, ऊंट की सवारी, अनेक प्रकार की व्याधियाॅ देती हैं। सेाना, चांदी, मल-मूत्र आदि सपने में देखना, सपने में छींक आना, यक्ष, राक्षस, पिषाचरों को देखना, लाल पदार्थ का लेपन, लाल वस्त्र धारण करना, तेल मर्दन, बाल कटा आदमी, गधे की सवारी दक्षिण दिषा की यात्रा, काला पुरुष अथवा काला वस्त्र धारण किए इंसान को देखना, स्वयं की मृत्य देखना, केष, अंगार, भस्म, सर्प, जल विहीन नदी, बिखरे बाल, नाचते हुए दक्षिण दिषा में जाना, पूरे शरीर में कीचड़, गढढे अथवा अग्नि में गिर कर वापस न निकल पाना आदि जैसे सपने व्यक्ति को शारीरिक कष्ट पहुंचाते हैं।
यदि व्यक्ति की जन्म पत्रिका में मारकेष अथवा स्वास्थ्य संबंधी अन्य अषुभ योग दषा, प्रत्यंतर तथा गोचर वष भी चल रहे हों तो यह सब मृत्यु तुल्य कष्टों का स्पष्ट संकेत बन जाते हैं।
जो साधक स्वप्न दर्षन से भविष्यफल की सिद्धि में इच्छुक हैं वह सरल से एक मणिभद्र प्रयोग द्वारा इसमें सिद्धहस्त हो सकते हैं। यदि अपने स्वयं के ग्रह-नक्षत्रानुसार इष्टसिद्धि का भाग्य प्रबल योगकारक है और दूसरे संयम और आस्था का पूर्ण भंडार साधक में निहित है तो शुभाषुभ का पूर्वाभास स्वप्न में अवष्य होने लगेगा।
संयमित और सात्विक जीवन शैली से 21 दिनों तक नित्य रात्रि में सोने से पूर्व तिल के तेल का एक दीपक जलाएं। उसमें एक पीली बड़ी कौड़ी स्थापित कर दें। स्वप्नेष्वरी देवी का ध्यान करके मंत्र 21 बार जप करें। इसके बाद मणिभद्र मंत्र की 21 माला जप करें। अंतिम दिन कनेर के लाल पुष्पों के साथ दीपक में से कौड़ी निकाल कर किसी तांबें के छोटे से पात्र में बंद करके रख लें। तदन्तर में जब भी सपने में कुछ जानने की इच्छा हो तो सोने से पूर्व हाथ-पैर अच्छी तरह धोकर यह पात्र सिर के समीप रख लें और देवी का ध्यान तथा मणिभद्र मंत्र जप कर अपने इष्ट कार्य को सपने में मूर्त होने की कामना मन ही मन दोहराते हुए सो जाएं।
स्वप्नेष्वरी मंत्र-
ऊँ श्रीं स्वप्नेष्वरी कार्य मे वद स्वाहा।
जप मंत्र-

ऊँ नमो मणिभद्राय नेतकाय सर्वकार्य सिद्धये मम् स्वप्न दर्षनानि कुरु कुरु स्वाहा। dreams

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