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क्या वास्तव में भूत-प्रेत होते हैं

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क्या वास्तव में भूत-प्रेत होते हैं
आत्मा के तीन स्वरुप माने गए हैं – जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा। जो भौतिक शरीर में वास करती है वह जीवात्मा कहलाती है। जब वासनामय शरीर में जीवात्मा का निवास होता है तब वह प्रेतात्मा कहलाती है। यह आत्मा जब अत्यन्त सूक्ष्म परमाणुओं से निर्मित सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेष करता है, उस अवस्था को सूक्ष्मात्मा कहते हैं। वासना के अच्छे और बुरे भाव के कारण अथवा भाव के आधार पर मृतात्माओं को भी अच्छे और बुरे की संज्ञाएं दी गयी हैं। जहाॅ अच्छी मृतात्माओं का वास होता है उसे पितृलोक तथा बुरी आत्मा वाले को प्रेत लोक, वासना लोक आदि कहते हैं। अच्छे बुरे स्भावानुसार ही मृतात्मा अपनी अतृप्त वासनाओं के पूर्ति के निमित्त कुकर्मी, वासनामय जीवन जीने वाले आदि भौतिक शरीर की तलाष करती है, तदनुसार उस माध्यम से गुण-कर्म, स्वभाव के अनुसार अपनी अषान्त, असन्तुष्ट, विक्षुब्ध तथा वासनामयी दुरभि संधि रच सके तथा अपने अनुकूल तत्वों को ग्रहण कर सके। इसलिए जिस मानसिकता, वृत्ति-प्रवृत्ति, सत्कर्मों आदि का भौतिक शरीर होता है उसी के अनुरुप आत्मा उसमें प्रविष्ट होती है और अपने-अपने तत्व ग्रहण करती है। अधिकांशतः भौतिक शरीर को इसका पता नहीं चल पाता परंतु आज असंख्य उदाहरण मिलते हैं कि पितृलोक की आत्माओं ने भौतिक शरीर का मार्गदर्शन किया, उनका उत्थान किया अथवा दुष्ट प्रवृत्तिनुसार उन्हें परेशान किया।
यह थी प्रेतात्मा की आध्यात्मिक दृष्टि से विवेचना। तत्वदर्शन भूत का शाब्दिक अर्थ लगता है – जिसका कोई वर्तमान न हो, केवल अतीत हो।
योग तथा प्राच्य ऋषि परंपरानुसार मानव शरीर अपने पांच तत्वों से निर्मित है। तथा इनका प्रभाव ही मानव शरीर पर पड़ता है। शरीर जब मृत्यु को प्राप्त होता है, तो स्थूल शरीर यहाॅ ही पड़ा रह जाता है और अपने पूर्व संचित कर्म अथवा पाप या श्रापवश उसे अधोगति या भूतप्रेत योनि प्राप्त होती है। मृत्यु के बाद मनुष्य की अगली यात्रा वायु तत्व प्रधान अर्थात् सूक्ष्म शरीर से प्रारंभ होती है। इसमें अग्नि, जल, पृथ्वी तत्व का ठोसपन नहीं होता, क्योंकि यदि यह होता तो इसमें रुप, रस, गंध अवश्य रहती। इनका संतुलन बना रहे इसलिए इन तत्वों की प्रधानता वाले तत्वों की आवश्यकता होती है। इससे स्पष्ट होता है कि प्रेत वायवीय देहधारी होते हैं। अतः पानी, भोजन अथवा मानवोचित क्रियाएं इनमें नहीं होतीं।
वायवीय प्रधान होने से इनमें आकार या कर्मेन्द्रियों की प्रखरता नहीं रहती। जबकि उनके दो तत्व प्रमुख रुप से होने पर उनका रुप भी उनके अनुरुप बन जाता है। प्रेतात्मा में कुछ ऋषियों ने आकाश तत्व को नहीं माना है। क्योंकि जहाॅ आकाश तत्व है वहाॅ शब्द अवश्य है। इसलिए प्रेत योनि बोलने में असमर्थ है। वह केवल संवेदनशील है।
ठोसपन न होने के कारण ही प्रेत को यदि गोली, तलवार, लाठी आदि मारी जाए तो उस पर उनका कोई प्रभाव नहीं होता। प्रेत में सुख-दुःख अनुभव करने की क्षमता अवश्य होती है। क्योंकि उनके वाह्यकरण में वायु तथा आकाश और अंतःकरण में मन, बुद्धि और चित्त संज्ञाशून्य होती है इसलिए वह केवल सुख-दुःख का ही अनुभव कर सकते हैं।
वैदिक साहित्य, पुराण-आगम, श्रीमद भागवत गीता, महाभारत, मानस साहित्य आदि में असंख्य ऐसे प्रसंग आते हैं कि इस योनि के अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता। गीता में ‘धंुधुकारी प्रेत’ की कथा सर्वविदित है। ऋगवेद की गाथाओं में अनेक स्थानों पर प्रेत-पिशाचों का उल्लेख मिलता है। एक स्थान पर ऋषि कहते हैं – ‘हे शमशान घाट के पिशाचादि, यहाॅ से हटो और दूर हो जाओ।’ भीष्म द्वारा युधिष्ठर को श्राद्ध विधि समझाने के प्रकरण में देव पूजन से पूर्व गन्धर्व, दानव, राक्षस, प्रेत, पिशाच, किन्नर आदि पहले पूजन का वर्णन आता है।
चरक संहिता में प्रेत बाधा से पीडि़त रोगी के लक्षण और निदान के उपाय विस्तार से मिलते हैं। ज्योतिष साहित्य के मूल ग्रंथों – प्रष्नमार्ग, वृहत्पराषर, होरा सार, फलदीपिका, मानसागरी आदि में ज्योतिषीय योग हैं जो प्रेत पीड़ा, पितृदोष आदि बाधाओं का विष्लेषण करते हैं।
ऐसा नहीं कि हिन्दू दर्शन, आध्यात्मयोग में ही प्रेत अस्तित्व को स्वीकारा है। हिन्दू धर्म के अतिरिक्त विश्व में बौद्ध, ताओ, कन्फ्यूसियस, षिन्टों, जुरथ्रस्त (पारसी), इस्लाम, यहूदी तथा ईसाई धर्मों के अनुयाईयों नें भी एक मत से इस योनि को स्वीकारा है।
आज संपूर्ण विश्व जगत में इस अलौकिक सत्य को जानने के लिए अनेक शोध कार्य किए हैं। विख्यात मनोविज्ञानी डा.जुंग ने अपने ग्रंथ ‘ज्ीम ैजतनबजनतम ंदक क्लदंउपबे व िजीम च्ीलबीम’ में लिखा है – ‘भूत या तो सार्वजनिक विमोह है या सार्वजनिक सत्य’
वैज्ञानिक जगत में विष्वव्यापी क्रान्ति इस दिषा में तब आई जब क्रिलियाॅन फोटोग्राफी द्वारा आभामण्डल का फोटो खीचा गया। कुछ वर्ष पूर्व अमेरिका के कुछ खोजियों ने एक आष्चर्यजनक प्रयोग इस विषय में किया कि प्राणी की मृत्यु के समय उसके शरीर को त्यागने पर वैद्युतिक परमाणुओं का अर्थात् उस आत्मा का भी फोटों उतारा जा सकता है।
इस के लिए उन्होंने ‘विलसा क्लाउड चैम्बर’ का प्रयोग किया। यह विषेष चैम्बर या कक्ष एक खोखले सिलिण्डर के आकार का होता है, जिसके भीतर से हवा सक्षन पम्प द्वारा बाहर निकालकर अन्दर पूर्णरुप से शून्य पैदा किया जाता है। उस सिलिण्डर के अन्दर एक सिरे पर एक विषेष प्रकार का गीला कागज़ चिपका दिया जाता है जिससे इतनी नमी निकलती रहे कि भीतरी भाग में यदि एक भी इलैक्ट्रान या अणु गुजरे तो विषेष फोटो तकनीकि द्वारा उसका चित्र उतारा जा सके।
इस प्रकार के क्लाउड चैम्बर की बगल में एक छोटी सी कोठरी बनाई गई और उसके भीतर कुछ मेंढक और चूहे रखे गए। किसी विषेष वैज्ञानिक विधि से उनका प्राणान्त किया गया और उसी क्षण कैमरे ने कक्ष के भीतर होने वाले परिवर्तन को चित्रित कर लिया गया। 50 में से 30 प्रयोगों में पाया गया कि जो फोटो खींचे गए उनमें मृत प्राणी के आकार से मिलते-जुलते क्रम में इलैक्ट्रानों से छायात्मक आकृतियाॅ बन गयीं। कालान्तर में असंख्य बार अनुभव में आया कि केवल मनुष्यों और पशुओं की ही छायात्माएं नहीं दीखतीं, वरन बड़े-बड़े विध्वसंक जहाजों और रेलों आदि की भी भूतात्माएं दिखाई देती हैं।
समुद्रों में जो बड़े-बड़े जहाज दुर्घटना ग्रस्त होते हैं उनमें से कुछ अपने पूर्व आकार में समुद्र में चक्कर लगाते देखे गए। कई बार नाविक उन्हें छाया न समझकर वास्तविक जहाज समझ बैठते हैं फलस्वरुप उस छाया से टकराने से बचने की चेष्टा में स्वयं भी दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं। इस सम्बन्ध में अनेक प्रमाणिक और विष्वसनीय तथ्य खोजियों को मिले हैं। इधर दुर्घटनाओं में ध्वस्त रेलों की छायात्माओं का भी पता चला है। इन्फ्रारेड फोटोग्राफी से और भी ऐसे तथ्य सामने आए हैं कि जहाॅ कुछ मूर्त नहीं था वह चित्रित हो गया। अन्ततः विष्वव्यापी स्तर पर विचारकों ने माना कि प्रत्येक पदार्थ की एक सूक्ष्म अनुकृति भी होती है जो सदैव उसके साथ अथवा उसके अस्तित्व के बाद भी बनी रहती है। इसीलिए स्थूल संरचना के न रहने पर भी उसकी सत्ता (भूत) यथावत बना रहता है।
प्रतात्माओं के उपद्रव के किस्से प्रचलित हैं। अनेक उदाहरण अथवा प्रमाण हैं कि व्यक्ति, भूमि, भवन, गाॅव, शहर आदि इनके षिकार होते रहते हैं।
जनकल्याण के लिए समर्पित संत श्री जगदाचार्य स्वामी अखिलेष जी ने आषीष स्वरुप बताया कि परिवार का कोई सदस्य रात्रि को चैका उठ जाने के बाद चांदी की कटोरी में देवस्थान या किसी अन्य पवित्र निष्चित स्थल पर कपूर तथा लौंग जलाएगा तो वह अनेक आकस्मिक, दैहिक, दैविक एवं भौतिक संकटो से मुक्त रहेगा।
प्रेत बाधा दूर करने के लिए पुष्य नक्षत्र में चिड़चिटे अथवा धतूरे का पौधा जड़ सहित उखाड़कर यदि इस प्रकार धरती में दबा दिया जाए कि जड़ वाला भाग ऊपर रहे और पूरा पौधा धरती में समाॅ जाए तो उस परिवार में सुख-षान्ति बनी रहती है, वहाॅ प्रेतात्माएं कभी भी डेरा नहीं जमातीं।


Bhoottttt

आत्माकेतीनस्वरुपमानेगएहैंजीवात्मा, प्रेतात्माऔरसूक्ष्मात्मा।जोभौतिकशरीरमेंवासकरतीहैवहजीवात्माकहलातीहै।जबवासनामयशरीरमेंजीवात्माकानिवासहोताहैतबवहप्रेतात्माकहलातीहै।यहआत्माजबअत्यन्तसूक्ष्मपरमाणुओंसेनिर्मितसूक्ष्मतमशरीरमेंप्रवेषकरताहै, उसअवस्थाकोसूक्ष्मात्माकहतेहैं।वासनाकेअच्छेऔरबुरेभावकेकारणअथवाभावकेआधारपरमृतात्माओंकोभीअच्छेऔरबुरेकीसंज्ञाएंदीगयीहैं।जहाॅअच्छीमृतात्माओंकावासहोताहैउसेपितृलोकतथाबुरीआत्मावालेकोप्रेतलोक, वासनालोकआदिकहतेहैं।अच्छेबुरेस्भावानुसारहीमृतात्माअपनीअतृप्तवासनाओंकेपूर्तिकेनिमित्तकुकर्मी, वासनामयजीवनजीनेवालेआदिभौतिकशरीरकीतलाषकरतीहै, तदनुसारउसमाध्यमसेगुणकर्म, स्वभावकेअनुसारअपनीअषान्त, असन्तुष्ट, विक्षुब्धतथावासनामयीदुरभिसंधिरचसकेतथाअपनेअनुकूलतत्वोंकोग्रहणकरसके।इसलिएजिसमानसिकता, वृत्तिप्रवृत्ति, सत्कर्मोंआदिकाभौतिकशरीरहोताहैउसीकेअनुरुपआत्माउसमेंप्रविष्टहोतीहैऔरअपनेअपनेतत्वग्रहणकरतीहै।अधिकांशतःभौतिकशरीरकोइसकापतानहींचलपातापरंतुआजअसंख्यउदाहरणमिलतेहैंकिपितृलोककीआत्माओंनेभौतिकशरीरकामार्गदर्शनकिया, उनकाउत्थानकियाअथवादुष्टप्रवृत्तिनुसारउन्हेंपरेशानकिया।

यहथीप्रेतात्माकीआध्यात्मिकदृष्टिसेविवेचना।तत्वदर्शनभूतकाशाब्दिकअर्थलगताहैजिसकाकोईवर्तमानहो, केवलअतीतहो।

योगतथाप्राच्यऋषिपरंपरानुसारमानवशरीरअपनेपांचतत्वोंसेनिर्मितहै।तथाइनकाप्रभावहीमानवशरीरपरपड़ताहै।शरीरजबमृत्युकोप्राप्तहोताहै, तोस्थूलशरीरयहाॅहीपड़ारहजाताहैऔरअपनेपूर्वसंचितकर्मअथवापापयाश्रापवशउसेअधोगतियाभूतप्रेतयोनिप्राप्तहोतीहै।मृत्युकेबादमनुष्यकीअगलीयात्रावायुतत्वप्रधानअर्थात्सूक्ष्मशरीरसेप्रारंभहोतीहै।इसमेंअग्नि, जल, पृथ्वीतत्वकाठोसपननहींहोता, क्योंकियदियहहोतातोइसमेंरुप, रस, गंधअवश्यरहती।इनकासंतुलनबनारहेइसलिएइनतत्वोंकीप्रधानतावालेतत्वोंकीआवश्यकताहोतीहै।इससेस्पष्टहोताहैकिप्रेतवायवीयदेहधारीहोतेहैं।अतःपानी, भोजनअथवामानवोचितक्रियाएंइनमेंनहींहोतीं।

वायवीयप्रधानहोनेसेइनमेंआकारयाकर्मेन्द्रियोंकीप्रखरतानहींरहती।जबकिउनकेदोतत्वप्रमुखरुपसेहोनेपरउनकारुपभीउनकेअनुरुपबनजाताहै।प्रेतात्मामेंकुछऋषियोंनेआकाशतत्वकोनहींमानाहै।क्योंकिजहाॅआकाशतत्वहैवहाॅशब्दअवश्यहै।इसलिएप्रेतयोनिबोलनेमेंअसमर्थहै।वहकेवलसंवेदनशीलहै।

ठोसपनहोनेकेकारणहीप्रेतकोयदिगोली, तलवार, लाठीआदिमारीजाएतोउसपरउनकाकोईप्रभावनहींहोता।प्रेतमेंसुखदुःखअनुभवकरनेकीक्षमताअवश्यहोतीहै।क्योंकिउनकेवाह्यकरणमेंवायुतथाआकाशऔरअंतःकरणमेंमन, बुद्धिऔरचित्तसंज्ञाशून्यहोतीहैइसलिएवहकेवलसुखदुःखकाहीअनुभवकरसकतेहैं।

वैदिकसाहित्य, पुराणआगम, श्रीमदभागवतगीता, महाभारत, मानससाहित्यआदिमेंअसंख्यऐसेप्रसंगआतेहैंकिइसयोनिकेअस्तित्वकोनकारानहींजासकता।गीतामेंधंुधुकारीप्रेतकीकथासर्वविदितहै।ऋगवेदकीगाथाओंमेंअनेकस्थानोंपरप्रेतपिशाचोंकाउल्लेखमिलताहै।एकस्थानपरऋषिकहतेहैं – ‘हेशमशानघाटकेपिशाचादि, यहाॅसेहटोऔरदूरहोजाओ।भीष्मद्वारायुधिष्ठरकोश्राद्धविधिसमझानेकेप्रकरणमेंदेवपूजनसेपूर्वगन्धर्व, दानव, राक्षस, प्रेत, पिशाच, किन्नरआदिपहलेपूजनकावर्णनआताहै।

चरकसंहितामेंप्रेतबाधासेपीडि़तरोगीकेलक्षणऔरनिदानकेउपायविस्तारसेमिलतेहैं।ज्योतिषसाहित्यकेमूलग्रंथोंप्रष्नमार्ग, वृहत्पराषर, होरासार, फलदीपिका, मानसागरीआदिमेंज्योतिषीययोगहैंजोप्रेतपीड़ा, पितृदोषआदिबाधाओंकाविष्लेषणकरतेहैं।

ऐसानहींकिहिन्दूदर्शन, आध्यात्मयोगमेंहीप्रेतअस्तित्वकोस्वीकाराहै।हिन्दूधर्मकेअतिरिक्तविश्वमेंबौद्ध, ताओ, कन्फ्यूसियस, षिन्टों, जुरथ्रस्त (पारसी), इस्लाम, यहूदीतथाईसाईधर्मोंकेअनुयाईयोंनेंभीएकमतसेइसयोनिकोस्वीकाराहै।

आजसंपूर्णविश्वजगतमेंइसअलौकिकसत्यकोजाननेकेलिएअनेकशोधकार्यकिएहैं।विख्यातमनोविज्ञानीडा.जुंगनेअपनेग्रंथज्ीमैजतनबजनतमंदकक्लदंउपबेिजीमच्ीलबीममेंलिखाहै – ‘भूतयातोसार्वजनिकविमोहहैयासार्वजनिकसत्य

वैज्ञानिकजगतमेंविष्वव्यापीक्रान्तिइसदिषामेंतबआईजबक्रिलियाॅनफोटोग्राफीद्वाराआभामण्डलकाफोटोखीचागया।कुछवर्षपूर्वअमेरिकाकेकुछखोजियोंनेएकआष्चर्यजनकप्रयोगइसविषयमेंकियाकिप्राणीकीमृत्युकेसमयउसकेशरीरकोत्यागनेपरवैद्युतिकपरमाणुओंकाअर्थात्उसआत्माकाभीफोटोंउताराजासकताहै।

इसकेलिएउन्होंनेविलसाक्लाउडचैम्बरकाप्रयोगकिया।यहविषेषचैम्बरयाकक्षएकखोखलेसिलिण्डरकेआकारकाहोताहै, जिसकेभीतरसेहवासक्षनपम्पद्वाराबाहरनिकालकरअन्दरपूर्णरुपसेशून्यपैदाकियाजाताहै।उससिलिण्डरकेअन्दरएकसिरेपरएकविषेषप्रकारकागीलाकागज़चिपकादियाजाताहैजिससेइतनीनमीनिकलतीरहेकिभीतरीभागमेंयदिएकभीइलैक्ट्रानयाअणुगुजरेतोविषेषफोटोतकनीकिद्वाराउसकाचित्रउताराजासके। इसप्रकारकेक्लाउडचैम्बरकीबगलमेंएकछोटीसीकोठरीबनाईगईऔरउसकेभीतरकुछमेंढकऔरचूहेरखेगए।किसीविषेषवैज्ञानिकविधिसेउनकाप्राणान्तकियागयाऔरउसीक्षणकैमरेनेकक्षकेभीतरहोनेवालेपरिवर्तनकोचित्रितकरलियागया। 50 मेंसे 30 प्रयोगोंमेंपायागयाकिजोफोटोखींचेगएउनमेंमृतप्राणीकेआकारसेमिलतेजुलतेक्रममेंइलैक्ट्रानोंसेछायात्मकआकृतियाॅबनगयीं।कालान्तरमेंअसंख्यबारअनुभवमेंआयाकिकेवलमनुष्योंऔरपशुओंकीहीछायात्माएंनहींदीखतीं, वरनबड़ेबड़ेविध्वसंकजहाजोंऔररेलोंआदिकीभीभूतात्माएंदिखाईदेतीहैं।

समुद्रोंमेंजोबड़ेबड़ेजहाजदुर्घटनाग्रस्तहोतेहैंउनमेंसेकुछअपनेपूर्वआकारमेंसमुद्रमेंचक्करलगातेदेखेगए।कईबारनाविकउन्हेंछायासमझकरवास्तविकजहाजसमझबैठतेहैंफलस्वरुपउसछायासेटकरानेसेबचनेकीचेष्टामेंस्वयंभीदुर्घटनाग्रस्तहोजातेहैं।इससम्बन्धमेंअनेकप्रमाणिकऔरविष्वसनीयतथ्यखोजियोंकोमिलेहैं।इधरदुर्घटनाओंमेंध्वस्तरेलोंकीछायात्माओंकाभीपताचलाहै।इन्फ्रारेडफोटोग्राफीसेऔरभीऐसेतथ्यसामनेआएहैंकिजहाॅकुछमूर्तनहींथावहचित्रितहोगया।अन्ततःविष्वव्यापीस्तरपरविचारकोंनेमानाकिप्रत्येकपदार्थकीएकसूक्ष्मअनुकृतिभीहोतीहैजोसदैवउसकेसाथअथवाउसकेअस्तित्वकेबादभीबनीरहतीहै।इसीलिएस्थूलसंरचनाकेरहनेपरभीउसकीसत्ता (भूत) यथावतबनारहताहै।

प्रतात्माओंकेउपद्रवकेकिस्सेप्रचलितहैं।अनेकउदाहरणअथवाप्रमाणहैंकिव्यक्ति, भूमि, भवन, गाॅव, शहरआदिइनकेषिकारहोतेरहतेहैं।

जनकल्याणकेलिएसमर्पितसंतश्रीजगदाचार्यस्वामीअखिलेषजीनेआषीषस्वरुपबतायाकिपरिवारकाकोईसदस्यरात्रिकोचैकाउठजानेकेबादचांदीकीकटोरीमेंदेवस्थानयाकिसीअन्यपवित्रनिष्चितस्थलपरकपूरतथालौंगजलाएगातोवहअनेकआकस्मिक, दैहिक, दैविकएवंभौतिकसंकटोसेमुक्तरहेगा।

प्रेतबाधादूरकरनेकेलिएपुष्यनक्षत्रमेंचिड़चिटेअथवाधतूरेकापौधाजड़सहितउखाड़करयदिइसप्रकारधरतीमेंदबादियाजाएकिजड़वालाभागऊपररहेऔरपूरापौधाधरतीमेंसमाॅजाएतोउसपरिवारमेंसुखषान्तिबनीरहतीहै, वहाॅप्रेतात्माएंकभीभीडेरानहींजमातीं।

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