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इस्लाम पशुओं की क़ुरबानी नहीं सिखाता

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cowsok

ईद मुबारक……..

|| इस्लाम पशुओं की क़ुरबानी नहीं सिखाता ||

(कितना अच्छा है इस्लाम)

मेरी पुस्तकें पढ़ने वाले छोटी आयु से लेकर वयोवृद्धजन तक लाखों लोग होंगे। इनमें से अधिकांश लोग सम्भवतः शाकाहारी होंगे। जो भी हों एक बात ध्यान से देखें, सोचें और मनन करें कि विगत एक दशक से जगह-जगह कटने को तैयार निरीह पशु-पक्षियों की दुकानदारी बढ़ी है। उनकी दुर्दशा, ऑखों में व्याप्त मौत का भय। जीवनदान की आशा में निहारती उनकी करुण-दारुण ऑखें, कौन नहीं पिघल जाएगा। सनातन घर्म में हमें जीव पर दया करना सिखलाया जाता है। परन्तु यह सब लिखने, पढ़ने तथा समाज सुधारक द्वारा भाषण देने से दूर नहीं हो सकता। यदि ऐसा हुआ होता तो निर्मम हत्याएं कभी की बंद हो गयी होतीं। कम से कम सार्वजनिक रुप से तो इन जीवों की प्रदर्शनी तो कम हो ही जाती। परन्तु ऐसा नहीं हुआ। न ही भविष्य में होने की कोई आशा है। मुस्लिम समाज धर्म के नाम पर जीव-जन्तुओं की हत्या करके पुण्य के भागीदार बनते हैं। हम सबके पास अनेक प्रमाण हैं और समय-समय पर मेरी कुछ मुस्लिम भाइयों से चर्चा भी होती रहती है कि इस्लाम वास्तव में जिबह की इजाजत ही नहीं देता। पवित्र कुरान में अनेक आयातों से पता चलता है कि वहॉ प्रेम और ममता का पाठ पढ़ाया गया है, न कि निरीह पशु-पक्षियों की हत्या कर सबब कमाने का। कितना अच्छज्ञ है इस्लाम धर्म, आप भी इस्लाम मत में जीव पर दया करने के मत पर मनन करें।

पशुओं की शारीरिक स्वतंत्रता – रसूलुल्लाह स. ने पशुओं को चीरने या पहचानने के लिए किसी गरम वस्तु से उन पर निशान लगाने से सख़्ती से मना कर दिया। एक बार गधे को देखा जिसके चेहरे पर निशानी के लिए अग्नि चिन्ह दागा गया था तो रसूलुल्लाह बहुत क्रोधित हुए और कहा – जिसने भी यह किया है वह ईश्वर के आशीर्वाद से वंचित रहेगा।
पशुओं की बलि – कुरआने हकीम की सूरत अलहज 32:22 में स्पष्ट किया गया है कि ना तो पशुओं का मॉस और ना ही उनका रक्त ईश्वर तक पहॅुचता है। ईश्वर तक पहॅुचता है तो सिर्फ मनुष्य का निश्चय व आज्ञापालन।
इस्लाम ने पशुओं के अधिकारों को बहुत महत्व दिया है और मनुष्य को आदेश दिया है कि उनके अधिकारों की रक्षा करें।
श्री अबुहुरैरा ।।रज़ि।। का कथन है कि एक बार रसूलुल्लाह ।।स.।। से सहाबा (उनके साथीगण) ने प्रश्न किया, क्या पशुओं पर सहानुभूति का पुण्य भी मृत्यु के पश्चात मिलेगा? हुजूर ।।स.।। ने उत्तर दिया, निसंदेह मिलेगा। हर जीवित प्राणी पर सहानुभूति का पुण्य मिलेगा। हर जीवित प्राणी पर सहानुभूति का पुण्य होता है।। हदीस-बुखरी-शरीफ।।
पशुओं से हमदर्दी व उनका सम्मान – अबु हुरैरा।। रज़ि।। का कथन है कि रसूलुल्लाह स. ने एक वेश्या के विषय में बताया कि भीषण गरमी के दिन उसने एक कुत्ते को देखा जो प्यास के कारण अपनी जीभ बाहर निकाले हुए कुऍ के पास चक्कर लगा रहा था। उस औरत ने अपना मोजा कुऍ में डालकर भिगोया और उसे निचोड़कर कुत्ते को पानी पिला दिया। इस पुण्य से ईश्वर ने उसके सारे पाप क्षमा कर दिए।
श्री अबु हुरैरा।। रज़ि।। का कथन है कि रसूलुल्लाह स. ने बताया कि एक स्त्री पर ईश्वर का भयंकर प्रकोप इस लिए हुआ क्योंकि उसने एक बिल्ली को बंदी बनाकर उसे भोजन व पानी नहीं दिया और न ही उसे स्वतंत्र छोड़ा जिससे कि वह अपना भोजन स्वयं ढॅूढ सके।
सभी प्राणीयों पर दया करो – इरहमू मनफिल अर्दे यरहम नुकुमर्रहमान अर्थात् दुनिया वालों पर तुम रहम करो क्योंकि खुदा ने तुम पर बड़ी मेहरबानी की है।
कुरआन शरीफ में सूरे बकर में हज के वर्णन में लिखा है – व इजा तवल्ला सआ फिल अरदे लयुफ सेदा फीहा व युह लिकल हरसा वन्नसल वल्लाहु ला युहिब्बुल फसाद। अर्थात् जानवरों को मारना और खेतों को तबाह करना ज़मीन में खराबी फैलाना है और अल्लाह खराबी को पसन्द नहीं करता।

1. आदमी का जानवरों के साथ सलूक प्यार, रहम, मोहब्बत और इज्जत का होना चाहिए।
2. पाक रसूल ने तो जंगली जानवरों की खाल तक के उपयोग का निषेध किया।
3. रसूलुल्लाह ने पशुओं को चीरने या पहिचान के लिए किसी गरम वस्तु से निशान लगाने से सख्त मना किया है।
4. जब पाक नबी 622 ईस्वीं में मक्का गए तब उन्होंने देखा वहॉ पर लोग ऊॅट, कुब्क और भेड़ों की पूछें काट देते थे। पाक रसूल ने इस जंगली हरकत को न केवल बन्द करवाया अपितु ऐसे कृत्य को हराम करार दिया।
5. इस्लाम में रक्त के उपयोग पर सख्त मना है। अतः जो खून से बचना चाहें, मॉसाहारी कैसे हो सकता है।

यह है मॉसाहार मानवता पर कलंक एवं जानवरों के बारे में इस्लामी नजरिया। इस नज़रिए वाले मुस्लिम समाज के गुलाम रसूल, बुल्ले, रहीम, कबीर, चुन्ने मियां, नज़ीर, संतशिरोमणि बाकी बिसमिल्लाह, संतशिरोमणि रब्बानी, संतशिरोमणि मौहम्मद मासूम साहब, संतशिरोमणि सैफुददीन साहब, संतशिरोमणि नूरमौहम्मद साहब, संतशिरोमणि मिर्जा मज़हर साहब आदि जैसे अनेक सनातनी और वैष्णवी आस्थावादी सूफी-संत हुए हैं जिन्होंने अंततः सतमार्ग पर चलते हुए सद्गति प्राप्त की। इस ज्वलंत विषय का सार स्वयं एक मुस्लिम भाई द्वारा मुझे इस आशय से भेजा गया है कि मैं इसका व्यापक प्रचार-प्रसार करुं। ऐसा ही एक पत्र मुझे जोधपुर के श्री चंचलमल चोरड़िया जी से प्राप्त हुआ था। यह लेख उन पत्रों का ही सार-संक्षेप है। लेख का उददेश्य किसी की भी भावना को आघात पहॅुचाना कदापि नहीं है। यदि किसी को कष्ट पहॅुचता भी है तो उसके लिए क्षमा-याचना। लेख में शब्दों की त्रुटि भी संभावित है। बौद्धिक एवं प्रबुद्ध वर्ग से यही अपेक्षा है कि उन त्रुटियों की ओर ध्यान नहीं देंगे।
हम खून-खराबा बंद तो नहीं कर सकते, हमारे बस के बाहर की बात हो गयी है। क्योंकि प्रवचन से और सद्साहित्य पढ़ने मात्र से समाज को सुधरना होता तो कभी का सुधर गया होता। सुधार आता है अपने आप की भावना, अंतःप्रेरणा से। यह भावना जिसकी जाग्रत हो गई, चेतन्य होकर प्रताड़ित करने लगी, वह समझिये सुधर गया। मेरी इस बात पर मनन करें।
यदि प्रकृतिक रुप से सृजित हो रही ऊर्जा को संरक्षण देना है और उसके सुप्रभाव को दैनिक जीवन में प्रवेश करवाना है तो कम से कम कबूतर, तोते, मैना, बुलबुल, बटेर आदि की बिक्री पर प्रतिबंध लगवाने का प्रयास करें। सरकार की ओर से भी यह सब उचित नहीं ठहराया गया है और ऐसे लोंगो पर दण्ड का प्रावधान है, परंतु सब चलता है। कुंभ के दिनों धर्म स्थानों से हजारों की संख्या में गाय हटा दी जाती हैं। कभी आपने सोचा कि जितनी गाय हटा दी जाती हैं, वह कहॉ जाती हैं? इनमें से अधिकांशतः बूचड़खाने में चोरी से पहॅुचा दी जाती हैं। प्रसाशन भी इस विषय को लेकर मौन रहता है।
समाज इस विषय को लेकर गंभीर हो या न हो, आप मेरा प्रयोग अपनी सुविधानुसार वर्ष में अथवा माह में एक दो बार अथवा अधिक अवश्य करें। देखें आपको कितनी शांति की अनुभूति होती है।
अपनी आयु की गणना करें। माना आप 40 वर्ष के हैं। आपको यदि अपने जन्म नक्षत्र, तिथि अथवा दिन का पता है तो यह प्रयोग और भी अधिक प्रभावशाली सिद्ध होगा। इनमें से कोई भी एक दिन चुन लें। इस दिन अपने बचाये हुए पैसों से अथवा सुपात्र को देने के उददेश्य से रखे हुए पैसों से अपनी आयु की संख्या में जीवित मछली, कबूतर, पक्षी क्रय करके उन्हें जीवन दान दें। यह प्रयोग यदि प्रातःकाल निःशब्द उठकर दिनचर्या से पूर्व करते हैं तो और भी सुंदर है। मृत्यु के भय से मुक्त पानी में भागती मछली तथा खुले आसमान में स्वच्छंद उड़ान भरते पक्षियों को आप अश्रुपूर्ण भाव से बस निहारते रहें।  यदि आयु की संख्या में क्रय करने की क्षमता नहीं है तो मात्र एक मछली अथवा कोई पक्षी को मृत्यु से मुक्ति दिलाने का प्रयास करें। यदि आपको अपनी जन्म तिथि, नक्षत्रादि का पता नहीं है तो अपनी सुविधानुसार किसी भी दिन यह प्रयोग कर सकते हैं। इस प्रयोग को करते रहने पर जो आप कमाएंगें वह शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता। हॉ! यह निश्चित है कि उस अकूत शांति तथा संतोष धन को आप बटोर नहीं पाऐंगे।

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गोपालराजूकेविचारकिसीकोमानसिकआघात

पहुँचानेकेलिएकदापिनहींहैं…..यदिकिसीको

आघातपहुँचताहैतोउसकेलिएक्षमायाचना

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