मेरे जीवन का एक लम्बा सुनहरा समय एक किराये के मकान में बीता है। हमारे पिताजी ने इसे चार दशक पूर्व अपने नाम ऐलाट करवाया था। उस समय उनके पास धन, शक्ति तथा सामर्थ्य आदि सब कुछ था। यदि वह चाहते तो ऐसे दसों मकान, जमीन आदि उपलब्ध करवा लेते। परन्तु उनके संत स्वभाव ने इस किराये के मकान में ही उन्हें संतुष्ट रखा। उनके पुण्य कमरें का फल हम भाई-बहिन भोग रहे हैं। उनके बाद से जब जीवन में स्वयं कुछ सोचने-समझने की चेतना जगी तब वह मकान क्रय करना हमारे लिए एक विकट समस्या बन गया था। मैं रातों-रात रो कर प्रभु से मांगता था कि क्या प्रभु मेरे भाग्य में अपने नाम की एक छोटी-सी छत भी नहीं है? दसों वर्ष मकान अपना नहीं हो सका। मकान मालिक जो एक करोड़ पति हैं परन्तु उतना ही दुष्ट प्रवृत्ति का निकला। उसने वह मकान अन्य को बेच दिया। हमारे पिता जी के उस पर अनेक ऐहसान थे। सबको उसने भुला दिया। रोने-कलपने के अलावा हमारे पास अन्य विकल्प नहीं था। वह मेरा सबसे बड़ा शत्रु बन गया। हार कर न चाहते हुए भी सर्वप्रथम तंत्र का मारण प्रयोग उस पर करवाया। प्रभु को ये कैसे भाता? मारण-उच्चाटन का उलटे मुझ पर ही विपरीत प्रभाव पड़ने लगा। पत्नि और बेटे को अनेक शारीरिक यातनायें भोगनी पड़ी। कष्ट दायी शल्य चिकित्सा भी उनकी दो बार करवानी पड़ी। एक वर्ष का समय मानसिक तथा शारीरिक यातनाओं का बीता। लम्बे समय से तंत्र क्षेत्र में जुड़ने के कारण मेरे अनेक ऐसे लोगों से संबंध थे जो मारण, मोहन, उच्चाटन आदि के प्रयोग करवाते थे। उन सबका भी सहारा मैंने इस मकान के लिए लिया। परंतु सब कुछ व्यर्थ साबित हुआ। तंत्र का दुष्प्रभाव उल्टे अपनों पर ही दिखाई देने लगा। प्रभु पर मेरी अटूट आस्था बचपन से ही है। अंततः मैंने उन्हीं को अपने आप को समर्पित कर दिया। यह भी निश्चय किया कि बुरे के लिए किसी भी प्रकार का कर्म नहीं करुंगा। वह घर मेरे लिए फिर भी समस्या बना रहा। इस बीच गुण्डा-गर्दी, कोर्ट-कचहरी आदि भी झेलनी पड़ी। दिन भर में 10-12 घंण्टों से अधिक बस प्रभु से एक छत की मांग करता रहता था। परंतु सब धर्म कर्म, क्रम-उपक्रम, उपाय, रोना-गिड़गिड़ाना निष्फल रहा। हर समय एक अज्ञात भय मन में बैठा रहता था कि पता नहीं किस अच्छे-बुरे यत्नों से मकान खाली न करवा लिया जाए। 1996 में हमारे आध्यात्मिक गुरु, सद् श्री अद्वैताचार्य जी महाराज घर आए हुए थे। उनके सम्मुख मैंने अपनी समस्या रखी। उन्होंने मुझे एक उपाय बताया, एक अविश्वसनीय चमत्कार हुआ। राज्य सरकार की नजूल भूमि को अपने नाम मुक्त करवाने की एक योजना निकली। भगवान का नाम लेकर मैंने एक जोखिम उठाया और फ्री होल्ड के लिए कार्यवाही प्रारंभ कर दी। पचासों अड़चने आयी परंतु प्रभु की कृपा साथ थी। संबंधित अधिकारी श्री एम.पी.श्रीवास्तव (ए.एस.डी.एम.) मेरे अपने बन गये। फिर तो पूरा शासन साथ हो गया। स्टेट बैंक के एक कर्मचारी श्री ऋषिपाल का सहयोग में आजन्म नहीं भूलुंगा। बदमाशी, गुंडागर्दी का डर इसने दूर करवा दिया। साये-सा वह मेरे साथ रहता था। अंततः मकान मेरे नाम फ्री होल्ड हो गया। आंगन में चालीस वर्ष पुराना नींम का वृक्ष है। नित्य चिड़ियों के लिए अनाज डालता हॅू। सैकड़ों चिड़ियां, कबूतर, तोता-मैना, कौवे, बुलबुल तथा गिलहरी आदि मस्ती में भोजन करते पेड़ पर चहचहाते हैं। मैं उन्हें एकटक निहारता हॅू। मन ही मन प्रभु को धन्यवाद देता हॅू। इससे बड़ा धन और सुख और कोई नहीं है। प्रभु यह बनाये रखें इससे अधिक मुझे चाहिए भी कुछ नहीं। जब मैनें गाड़ी ली तो उसे रखने के लिए नींम के पेड़ को काटने की बात चली। मैंने अपना निश्चय बता दिया, गाड़ी चाहे आए या ना आए पेड़ नहीं कटेगा। हांलाकि नित्य गाड़ी ऊपर चढ़ाते-उतारते समस्या अवश्य आती है फिर भी मन प्रसन्न है…. अस्तु …। पाठकों के लाभार्थ छोटा-सा वह उपाय लिख रहा हॅू जिसने मुझे अनेक मानसिक त्रासों से मुक्ति दिलायी। सूर्योदय से पूर्व जितनी जल्दी भी उठ सकते हैं आलस्य त्यागकर उठ जाएं। जैसे भी हो खुले आकाश के नीचे आ कर प्रभु से दीन बन कर अपनी इच्छा कहें। रोयें-गिड़गिड़ाएं। भाव-विभोर होकर आंसुओं को बहने दें। राम-दरबार की छवि आज्ञा चक्र पर उजागर होने दें। खुली आंखों में भी प्रभु की छवि जब बसने लगे तब जानिए प्रभु का सानिध्य आपको मिलना प्रारंभ हो गया है। 54 बार निम्न मंत्र श्रद्धा से जप करें- ‘‘ऊॅचे हू को नीचे हॅू को रंक हू को रवहॅु को सहज सुलभ आपनो सो घरु है।’’ इसके बाद सात बार अपने स्थान पर ही खड़े-खड़े बाएं से दांये घूम जाएं। यह उपाय 54 दिन तक दोहराते रहें। मैंने इतने लम्बे अर्से तक न जाने क्या-क्या किया है, तब जा कर एक छत मिली है। हो सकता है आप पर भी प्रभु की कृपा जल्दी ही हो |
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