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काल सर्प दोष और उसका निवारण

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काल सर्प दोष और उसका निवारण

वर्तमान में देखा जाए तो अस्सी प्रतिशत से भी अधिक लोग कालसर्प दोष से पीड़ित हैं। इस विवादास्पद दोष से पीड़ितों की इतनी अधिक दर अधिकांश लोगों के मन में एक अज्ञात भय बनाए हुए है। जनमानस में इस भय के पीछे की आस्था यहॉ तक पहॅुच गयी है कि जीवन की नियमितताओं में कहीं भी कोई लेशमात्र की कमी दिखाई देने लगती है तो ध्यान एक दम से इस बात पर केन्द्रित हो जाता है कि कहीं यह विपरीत बन रही परिस्थितियॉ काल सर्प दोष के कारण तो नहीं हैं? जन्म पत्रिका में जब राहु और केतु के मध्य अन्य सूर्य, चंद्र, मंगल आदि समस्त सब ग्रह स्थित होते हैं तब वह व्यक्ति काल सर्प दोष से पीड़ित कहा जाता है।

काल सर्प दोष के प्रकार

अनन्त काल सर्प योग – लग्न कुण्डली के प्रथम भाव में राहु और सप्तम भाव में केतु हो तथा समस्त ग्रह इन दोनों के मध्य स्थित छठे भाव तक कहीं भी स्थित हों तब यह योग बनता है। लग्न अथवा सप्तम भाव में भी कोई ग्रह राहु अथवा केतु के साथ स्थित हो तब भी इसको इस दोष की श्रेणी में ही रखा जाता है।

इस योग के कारण व्यक्ति पेट संबंधी विकार, मानसिक तनाव, षड़यन्त्रों का शिकार, प्रेत बाधा आदि दोषों से पीड़ित होता है। यदि पत्रिका में अन्य ग्रह शुभ स्थिति में हों तब यह दोष राजयोग कारक भी सिद्ध होता है, विदेश भ्रमण करता है तथा अनेकों प्रकार के सुख भोगता है।

कुलिक काल सर्प दोष – जन्म पत्रिका में दूसरे और आठवें भाव में क्रमशः राह और केतु हों और अन्य सब ग्रह इनके मध्य स्थित हो तब यह दोष बनता है।

इस दोष के परिणाम स्वरुप व्यक्ति वाणी दोष से पीड़ित होता है और धन संबंधी अनेक समस्याओं से त्रस्त रहता है। इसके विपरीत अन्य शुभ ग्रह-नक्षत्र स्थितियों के साथ यह योग कुबेर सम धन लाभ करवाता है।

वासुकि काल सर्प योग – तीसरे और नौवे भाव में राहु-केतु के मध्य स्थित ग्रह इस योग का कारण बनते हैं। इस दुर्योग से व्यक्ति के भाई-बहन कष्ट भोगते हैं, व्यक्ति अल्पायु होता है अथवा अपने इष्ट-मित्रों के द्वारा भी अनेकों कष्ट उठाता है।

इसके विपरीत शुभ ग्रहों के संयोग से इस दोष के व्यक्ति अनेक प्रकार से ख्याति अर्जित करते हैं।

शंखपाल कालसर्प योग – चतुर्थ भाव और दशम भाव में क्रमशः राहु और केतु के मध्य स्थित अन्य समस्त ग्रह इस दोष का कारण बनते हैं। मॉ को कष्ट, पेट अथवा किडनी सम्बन्धी व्याधियॉ, अपने परिजनों की कृपा पर आश्रित ऐसे व्यक्ति नकारात्मक विचारों से त्रस्त रहते हैं और तदनुसार आत्महत्या करने जैसी मनोदशा से सदैव पीड़ित होते हैं। इस दोष का सकारात्मक पक्ष भी नकारात्मक ही रहता है क्योंकि अन्य ग्रहों की शुभ स्थिति के बाद भी पूर्ण सुख से व्यक्ति वंचित रहते हैं। हॉ, अपने जन्म स्थान से दूर रहने पर ऐसे व्यक्तियों का भाग्योदय भी हो जाता है।

पद्म कालसर्प योग – पांचवे और एकादश भाव में राहु और केतु के मध्य स्थित अन्य समस्त ग्रह इस योग को जन्म देते हैं। ऐसे जातक संतान सुख से वंचित रहते हैं। पेट की व्याधियॉ इनको सताती हैं तथा अनुचित और अनावश्यक कायरें में यह धन व्यर्थ कर देते हैं।

इसके विरीत शुभ ग्रह स्थितियों के मध्य ऐसे व्यक्ति गुह्य विद्याओं में प्रवीण होते हैं और पूर्णरुप से संतान सुख भोगते हैं।

महापद्म कालसर्प योग – जन्म पत्रिका में छठे और द्वादश भाव में राहु और केतु के मध्य स्थित ग्रह इस योग का कारण बनते हैं।

ऐसे व्यक्ति गुप्त शत्रुओं द्वारा सदैव घिरे रहते हैं और मानसिक कष्ट भोगते हैं परन्तु दूसरी ओर ग्रहों की बलवान स्थित उन्हें शत्रुओं पर जय दिलवाती है।

तक्षत्र कालसर्प योग – सप्तम और प्रथम भाव में राहु और केतु समस्त ग्रह इस योग को जन्म देते हैं। ऐसे व्यक्ति वैवाहिक सुख से वंचित रहते हैं विवाह होने में इनको अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अनुकूल स्थितियों में ऐसे व्यक्ति अर्न्तजातीय विवाह करते हैं और जीवन का पूरा आनन्द भोगते हैं।

कर्कोटक कालसर्प योग – अष्टम और द्वितीय भाव में राहु और केतु के मध्य स्थित अन्य ग्रह इस योग को जन्म देते हैं। यह योग अल्पायु का कारण बनता है अथवा व्यक्ति रोग और शोक में जीवन व्यतीत करता है। परन्तु अन्य अनुकूल ग्रह स्थितियों में व्यक्ति पूर्ण स्वास्थ्य लाभ भोगता है।

शंखनाद कालसर्प योग – नवम भाव और तृतीय भाव में क्रमशः राहु और केतु के मध्य जब अन्य सब ग्रह जन्म पत्रिका में स्थित होते हैं तब इस योग का कारण बनते हैं। सारे जीवन व्यक्ति कर्मशील बना रहे, फिर भी इस योग के दुष्प्रभाव से भाग्यशाली नहीं कहलाता। परन्तु इसके विपरीत अनुकूल ग्रह स्थितियों के साथ जीवन भर भाग्य साथ देता है।

पातक कालसर्प योग – दशम भाव और चतुर्थ भाव के मध्य स्थित अन्य ग्रह इस योग को जन्म देते हैं। ऐसे व्यक्ति भी आय और व्यय में कभी भी सन्तुलन नहीं बना पाता। कर्जे से वह प्रायः पीड़ित और पिता के सुख से वंचित रहता है। परन्तु इसके विपरीत ग्रहों की शुभ स्थितियॉ इस योग में राजयोग और पैतृक धन-सम्पत्ति का पूर्ण सुख भोगता है।

विशक्त कालसर्प योग – एकादश और पंचम भाव में राहु तथा केतु के मध्य स्थित ग्रह हों तब यह योग बनता है। इस योग के दुष्परिणाम स्वरुप सुख में सदैव कमी बनी रहती है। कर्ज के अशुभ फल उन्हें मिलते हैं और भाई-बहनों के मध्य व्यर्थ का मन-मुटाव बना रहता है। अनुकूल योग व्यक्ति को ऐश्वर्यमय जीवन देता है।

शेषनाग कालसर्प योग – राहु द्वादश और केतु षष्टम भाव में हो और समस्त ग्रह इन दोनों के मध्य पत्रिक में स्थित हो जाएं तब यह योग बनता है। जीवन भर ऐसे व्यक्ति अर्थाभाव में रहते हैं। अनेक स्थानों पर भटकने के बाद भी उनकी जीवन कष्टों में बीतता है। परन्तु अनुकूल योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति अपने घर से सुदूर स्थानों में जीवन के सब सुख भोगते हैं।

कालसर्प दोष की सर्वाधिक कष्टकारी स्थिति

मान्यता है कि जन्म कुण्डली में राहु के साथ सूर्य स्थित हो तो ग्रहण योग बन जाता है। राहु के साथ गुरु की युति हो तो चाण्डाल रोग तथा राहु के साथ यदि मंगल की युति हो तो अंगारक योग बन जाता है। इसके अतिरिक्त राहु के साथ शुक्र अथवा बुध की युति भी इस योग को अत्यधिक पीड़ादायक बना देती है। काल सर्पयोग का दुष्प्रभाव उसके साथ-साथ अथवा पूर्व में प्रकट हुए कुछ लक्षणों से चरितार्थ होने लगता है जैसे सोते-जागते एक अज्ञात भय से भयभीत रहना। शरीर भारी-भारी रहना तथा आलस्य से सदा मन उच्चाट रहना। स्वप्न में सांप दिखाई देना, हवा में अपने को उड़ता हुआ देखना, उंचाई से गिरना आदि।

कालसर्प दोष से पीड़ित व्यक्ति के लिए कहा जा सकता है कि दुर्भाग्य उनका साथ नहीं छोड़ता है। संघर्ष, मानसिक तनाव, रोग-शोक आदि व्याधियां उनको जीवन भर घेरे रहती हैं।

कितनी सत्यता है कालसर्प योग में

कालसर्प दोष शास्त्रोक्त है अथवा किसी व्यवसायिक वर्ग द्वारा फैलाया गया मात्र मनघढ़ंत भय और भ्रम, यहॉ पर एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है। ज्योतिष के प्राचीन और चर्चित ग्रंथों के साथ-साथ अन्य छोटे-बड़े मूल जातक ग्रंथों को यदि टटोला जाए तो इनसे विवादास्पद ज्योतिष योग का वहॉ कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता है। पुष्टि के लिए फलदीपिका, वृहद्पराशर, होरासार, मानसागरी, रत्नावली, सारावली, भारतीय ज्योतिष, भारतीय ज्योतिष का इतिहास आदि अनेकों महाग्रंथों से इस वक्तव्य की पुष्टि की जा सकती है।

तार्किक और व्यवहारिक पहलू से यदि देखा जाए तो विश्व स्तर पर लाखों नहीं बल्कि करोड़ों की संख्या में लोगों की पत्रियों में काल सर्प दोष विद्यमान होगा। कालसर्प दोष मानने वाले स्कूल की बातों में जाए तब तो वह सब के सब लोग कालसर्प दोष से पीड़ित होना चाहिए परन्तु वस्तुस्थिति ऐसी कदापि नहीं है। काल सर्प दोष से युक्त अनेक ऐसे व्यक्ति मिल जाऐंगे जिन्होंने सफलता, ऐष्वर्य, स्वास्थ्य आदि-आदि सुख अपनी चरम सीमा तक भोगे हैं।

एक विचार यह भी व्यक्त किया जाता है कि किसी पूर्व जन्म में जाने-अन्जाने में सॉप को मार देने के प्रायश्चित् स्वरुप कुण्डली में यह दोष लगता है। बौद्धिकता से यदि मनन किया जाए तो प्रत्येक 15 साल में राहु और केतु के मध्य अन्य सात ग्रह गोचरवश स्थित रहते हैं। इसका अर्थ हुआ कि वर्ष में 3 से 6 माह तक ऐसी स्थिति बन जाती है। इस मध्य समूची धरती पर लाखों नहीं बल्कि करोड़ों की संख्या में जन्म हो जाते हैं। इस विचार धारा के अनुसार कहा जाए तो इतनी बड़ी संख्या में लोगों ने सांपों को मारा होगा, जिसके प्रायश्चित् स्वरुप उनको कालसर्प योग में जन्म लेना पड़ा। देखा जाए तो यह हास्यास्पद लगता है। इतनी बड़ी संख्या में तो विश्व भर के सांप भी नहीं हो सकते।

कालसर्प दोष निवारण के उपाय

इस विवादास्पद योग का जो भी तथ्य हो अथवा इसके परिणाम स्वरुप शुभाशुभ जो कुछ भी योग रहा हो, एक मत यह अवश्य सामने आया है कि इस योग का गुप्त-सुप्त अथवा लुप्त जो कुछ भी है, परन्तु अस्तित्व अवश्य है। यदि कहीं इस दोष के कारण आप भी भयातुर हैं अथवा कष्ट भोग रहे हैं तो अपनी श्रद्धा, सामर्थ्य और समयानुसार कुछ उपाय अवश्य कर देखें क्या पता आपके दुःख निवारण की कुंजी भी कहीं इनमें छिपी हो।

*       माह में एक बार आद्रा अथवा स्वाती नक्षत्र में शिव का रुद्राभिषेक अवश्य किया करें। शिवलिंग को चंदन युक्त धूप, तेल, सुगंध अथवा इत्र अर्पित किया करें।

*       यदि आपका जन्म राहु के नक्षत्रों आद्रा, स्वाती अथवा शतभिषा में से किसी में हुआ हो तो जहां तक संभव हो उनमें जटा वाला नारियल अपने ऊपर से 7 बार उतारकर जल प्रवाह कर दिया करें। मन में यह भावना जगाया करें कि दोष का जीवन से पलायन हो रहा है।

*       दिन के समय राहु काल में नित्य राहु की जननी मां सिंहिका का ध्यान करते हुए एक माला ‘नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय’ का जप किया करें।

*       यथासामर्थ्य बुध, शुक्र अथवा शनिवार को राहु से संबंधित वस्तुओं जैसे सीसा, सरसों का तेल, तिल, कंबल, मछली, धारदार हथियार, स्वर्ण, नीलवर्ण वस्त्र, गोमेद, सूप, काले रंग के पुष्प, अभ्रक, दक्षिणा आदि का सुपात्र को दान किया करें।

*       राहु का बीज मंत्र ‘ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः’ शुद्ध उच्चारण से जपना राहु जनित दोषों को दूर करता है।

*       चंदन की लकड़ी से बनी 108 मनकों की माला यदि सुलभ हो जाए तो उससे मंत्र जप कर राहु दोष से मुक्ति का प्रायश्चित शिव मंदिर में कर लिया करें।

*       राहु काल में मूली का दान करें अथवा जल प्रवाह कर दिया करें।

*       अपने भार के बराबर किसी शनिवार को कच्चा कोयला मंदिर अथवा किसी निःस्वार्थ भाव से चल रहे भंडारे में भोजन बनाने के प्रयोजन से दान कर दिया करें।

*       अपनी ससुराल से बनाए गए मधुर संबंध राहु दोष को क्षीण करते हैं।

*       जेब में चांदी की ठोस गोलियां रखा करें।

*       जौ को कच्चे दूध में रख कर जल प्रवाह कर दिया करें।

*       धूप और अगरबत्ती के स्थान पर अपनी पूजा अथवा शिव मंदिर में चंदन, इत्र और कपूर का प्रयोग किया करें।

*       नाग पंचमी के दिन भगवान शिव का सामर्थ्य और श्रद्धा भाव से अभिषेक किया करें।

*       सर्प सूक्त, नव नाम स्तोत्र, नील कंठ स्तोत्र, कालसर्प स्तोत्र, राहु स्तोत्र, राहु-मंगल स्तोत्र, आदि में से किसी एक का पाठ किया करें।

*       बुधवार के दिन राहु का कोई नक्षत्र हो तो उस दिन राहु काल के मध्य शिवलिंग पर चंदन की माला तथा चंदन का इत्र अर्पित करें।

*       पौराणिक मान्यता के अनुसार काल सर्प दोष शांति के लिए कुछ सिद्ध स्थल हैं – दक्षिण भारत में श्री लूतकाल हस्तीश्वर तथा श्रीनागेश्वरम् नाग मंदिर, नासिक का त्रयंबकेश्वर, प्रयाग में संगम, उत्तराखंड में केदारनाथ मंदिर के समीप श्री त्रियुगीनारायण मंदिर तथा बद्रीनाथ धाम।

*       जो लोग सामर्थ्यवान नहीं हैं वह यथासमय और सुविधा ऋषिकेश स्थित गरुड़चट्टी के गरुड़ मंदिर की पाषाण मूर्ति से लिपटकर दोषों के लिए दीन-हीन भाव से क्षमा-याचना करें। मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि दोष से चमत्कारिक रुप से वहॉ लाभ मिलता है।

*       काल सर्प दोष के लिए दूर्वा से राहु मंत्र जपकर अग्नि में होम करें।

*       एक गोला (खोपरा) लें। उसमें छेद करके चीनी, बूरा तथा कुछ सूखे मेवे पीस कर भर दें। यह गोला संभव हो तो किसी सांप की बांबी के पास दबा दें, न संभव हो तो किसी पीपल अथवा बड़ की जड़ में इस प्रकार से सुरक्षित दबा दें जिससे कि इसमें चीटी लग जाएं।

*       श्रावण मास में किसी सिद्ध शिव मंदिर में रुद्राभिषेक करवा कर शिवलिंग पर चांदी के नाग और नागिन का जोड़ा अर्पित करने से दोष में न्यूनता आने लगती है।

*       यदि जन्म सर्पयोनि में हुआ है तो उपरोक्त कोई भी उपाय अपनी सुविधानुसार अवश्य कर लिया करें।

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