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वास्तु दोष निवारक सरलतम प्रयोग

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मानसश्री गोपाल राजू (वैज्ञानिक)

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Vastu Dosha - By Gopal Raju

वास्तु दोष निवारक सरलतम प्रयोग

समाज में एक ऐसा वर्ग है जो वास्तुशास्त्र के उपक्रमों को अमीरों के चोचले मानता है। बौद्धिकता से मनन करें तो आप पाऐंगे कि जहां उत्तर और पूर्वमुखी घर हैं, वहां दक्षिण और पश्चिम मुखी घर भी हैं।  जहां भवन में उत्तरी-पूर्वी भाग में शौचालय बनें हैं, वहां बैसे ही भवन के अनियंत्र कोंणो में भी है। शुभत्व के जहां समस्त संसाधन गृह निर्माण आदि में लगाए गए हैं, वहां अनेक में इन सब से कोई भी शुभत्व का प्रयास नहीं किया गया है . .आदि.. आदि। यदि आप आंकड़े जमा करें तो पाऐंगे कि कहीं दक्षिण अथवा पश्चिम मुखी भवनों में निवास करने वाले तुलनात्मक रुप से फल-फूल रहे हैं। जिन भवनों में ईशान कोंण में शौचालाय बनें हैं वहां के लोग अनयंत्र कोंणो में बने शौचालयों की तुलना में अधिक स्वस्थ हैं अथवा अधिक संपन्न हैं। तो क्या हम उस वर्ग विशेष की बात मान कर स्वीकार कर लें कि वास्तुशास्त्र के अनुसार किए गए निर्माण आदि से सामान्यतया कोई अंतर नहीं पड़ता? आपके अपने व्यक्तिगत अनुभव में भी ऐसे प्रकरण अवश्य आए होंगे कि जहां भवन का निर्माण पूर्णतया शास्त्रोक्त उपायों से किया गया है फिर भी उसके स्वामी अथवा उसके परिजन कष्ट भरा जीवन जी रहे हैं। जब आप वास्तु पंडित, ज्योतिष मनीषी, तांत्रिक, मांत्रिक आदि के पास गए होंगे तो उसने तत्काल गणना कर दी होगी और कह दिया होगा कि भवन का वास्तु तो बिल्कुल ठीक है परन्तु जनम पत्री में गृह नक्षत्रों का योग विपरीत बन कर कष्ट कारी सिद्ध हो रहा है। अथवा किसी ने कुछ कर दिया है। अथवा देखने में तो सब ठीक है परन्तु आपके पितर रुष्ट हैं..आदि..आदि।

कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति का जीवन किसी एक घटक विशेष से प्रभावित नहीं हो रहा। अध्यात्म के मार्ग में जा कर, अंड-पिंड सिद्धांत को समझ कर, प्रारब्ध-पुरुषार्थ आदि की गूड़ता को मनन कर ही इस गूड़ रहस्य को समझा जा सकता है। प्रारब्ध के कर्मानुसार हम कष्ट भोग रहे हैं। लाख प्रयास, क्रम-उपक्रम करने पर भी हमें आशातीत फल नहीं मिल पा रहे। किस प्रयास आदि से हमें लाभ मिल जाए यह दृष्ट नहीं है। इसलिए एक को गले न लगा कर मानव कल्याण के लिए किए जा रहे प्रयासों को नियमित करते रहें, पता नहीं कौन सा उपक्रम आपको रास आ जाए।

यदि आपको कहीं आभास हो कि सब कुछ होते हुए भी वास्तु अथवा अन्य किन्हीं दोषों के कारण आप कष्ट भोग रहे हैं तो निम्न सरलतम प्रयोग भी कर के देख लें, पता नहीं कौन सा प्रयोग आपके लिए फिट बैठ जाए।

प्रयोग 1.

मकान, दुकान अथवा अन्य कोई भवन निर्माण के समय अलग-अलग पूजा-अर्चना करना प्रचलित है। पूजा-पाठ का आप जो भी विधान अपना लें, थोड़ा है। आस्था हो तो यह प्रयोग करके देखें, घर में कोई दोष नही आ पाएगा।

एक छोटा सा तांमे का ढक्कन बाला लोटा लें, उसे धोकर चमका लें। लोटे में तांमे के पांच छेद बाले सिक्के, छोटा सा चांदी का बना नाग और नागिन का जोड़ा, हनुमान जी के चरणों का थोड़ा सा सिन्दूर, लोहे का छोटा सा एक त्रिशूल तथा चांदी की एक जोड़ी पादुकाएं रख कर उसमें गंगा जल भर दें। लोटे का मुंह अच्छी तरह से बंद कर दें। जिससे जल छलक कर बाहर न गिरे। अब इसको घर, दुकान आदि की नींव में मुख्य द्वार के दांए भाग में दबा दें। यदि घर तैयार हो चुका हो और कोई सज्जन यह प्रयोग करना चाहें तो वह यह सामग्री मुख्य द्वार के दांयी ओर कहीं ऐसे पवित्र स्थान में दबा दें जहां से इसके दुबारा निकलने की संभावना न हो।

यदि भवन के आस-पास उपयुक्त स्थान उपलब्ध हो तो वहॉ अशोक, सिरस, केले, श्वेतार्क आदि के पेड़ लगा लें। पाठकों का भ्रम दूर कर दॅू। जब तक वृक्ष की परछांई भवन पर नहीं पड़ती, वास्तु दोष नहीं लगता। घर के सामने घनी से तुलसी की झाड़ लगा लें। यह सब उपक्रम घर में सकारात्मक ऊर्जा का समावेश करते हैं।

प्रयोग 2.

घर में सदैव श्री का वास रहे तथा वास्तु जनित किसी भी प्रकार के दोष के निदान के लिए घर की किसी लड़की, बहु, बेटी आदि से यह प्रयोग करवाएं।

गुरुवार के दिन मुख्य द्वार के दाएं अथवा बांए ओर गंगा जल से पवित्र करें। यहॉ दाएं हाथ की अनामिका तथा तथा हल्दी-दही के घोल से एक स्वास्तिक बनाएं। इस पर थोड़ा सा गुड़ रखकर एक बूंद शहद टपका दें। प्रत्येक गुरुवार को यह क्रम दोहरा दिया करें। कुछ समय बाद आपको घर का वातावरण सुखद लगने लगेगा।

प्रयोग 3.

किसी भी धातु का एक कटोरा लें। उसमें चावल, नागकेसर भर लें। यदि इनको किसी शुभ मुहूर्त में अभिमंत्रित करके भरा जाता है तो अधिक प्रभावशाली सिद्ध होगा। इस कटोरे में रखे चावलों में एक सिक्का, पीली बड़ी कौड़ी, पीली बड़ी हरड़ तथा छोटे से नृत्य करते हुए एक गणपति स्थापित कर दें। गणपति किसी भी धातु, कॉच, काष्ठ आदि के आप ले सकते हैं। सामग्री भरे हुए इस कटोरे को घर के किसी ईशान कोण में धरती से कुछ ऊॅचाई पर रख दें। भवन के वास्तु दोष निवारण में यह एक अचूक प्रयोग सिद्ध होगा। बहु-मंजिला भवन है अथवा भवन में अनेक कमरे हैं तो आप प्रत्येक तल तथा प्रत्येक कमरे के उत्तर-पूर्वी कोण में भी यह सामग्री रख सकते हैं। इसके लिए आपको उतनी संख्या में सामग्री भरे कटोरे तैयार करने होंगे जितने आप प्रयोग करने जा रहे हैं।

प्रयोग 4.

घर में सौभाग्य जगाने, प्रसन्न वातावरण बनाने अथवा भांति-भांति की सुगन्ध कर देवी-देवताओं को रिझाने के उपक्रम किए जाते हैं। अपनी-अपनी सामर्थ्य , श्रद्धानुसार लोग धूप, अगरबत्ती आदि का प्रयोग करते हैं। एक सलाह आपको अवश्य दॅूगा कि घटिया धूप, अगरबत्ती का प्रयोग अपने विवके से ही करें। यह सड़े हुए मोबिल ऑयल से तैयार की जाती है। इससे वास्तु दोष दूर हो या न हो, देवी-देवता प्रसन्न हो अपनी कृपा दृष्टि आप पर तथा आपके भवन पर डालें या न डालें परन्तु यह निश्चित है कि आपके फैफड़े अवश्य खराब हो जाऐंगे।

गाय के गोबर के दहकते हुए कण्डे पर शुद्ध घी में डुबोई लौंग, कपूर, गोला गिरि भीनी-भीनी मदमस्त महक से आपका चित्त प्रसन्न हो उठेगा। भवन के वातावरण में धीरे-धीरे सकारात्मक ऊर्जा भरने लगेगी।

प्रयोग 5.

किसी शुभ मुहूर्त में हल्दी से रंगे एक पीले कपड़े में थोड़ी सी नागकेसर, एक तांबे का सिक्का, हल्दी की एक अखण्डित गांठ, एक मुट्ठी नमक, एक पीली बड़ी हरड़, एक मुट्ठी गेंहू और चांदी अथवा तांबे की एक जोड़ा पादुकाएं बांधकर पोटली बना लें। इस पोटली को घर की रसोई में कहीं ऐसे स्थान पर लटका दें जहां आते-जाते किसी की दृष्टि उस पर न पड़े। जब लगे कि पोटली गन्दी होने लगी है तो किसी शुभ मुहूर्त में उपरोक्त सामग्री पीले कपड़े में बांधकर पुनः लटका दिया करें तथा पुरानी पोटली केा जल में कहीं विसर्जित कर दिया करें, आपके घर में सौभाग्य का आगमन होने लगेगा।

प्रयोग 6.

अपने दायें हाथ की आठ अंगुल प्रमाण में चार लोहे की कील ले लें। इतने ही बड़े चार टुकड़े बढ़ अथवा पीपल की जड़ के काट लें। इन्हें चारों कीलों के साथ अलग-अलग बांध लें। अपने भूखण्ड के चारों कोनों में इन्हें दबा दें। घर को चारों तरफ से लोहे, तांबे तथा सामर्थ्य हो तो चांदी के तारों से इस प्रकार दबा दें, कि तार चारों ओर दबी हुई कीलों से स्पर्ष करते हुए रहें। भूखण्ड के जिस स्थान में ईशान कोंण आ रहा हो, वहॉ तारों को अलग रखें। यहॉ पीपल अथवा बढ़ के नौ पत्तों से, एक पत्ता बीच में रखकर अष्टदल कमल बनाएं। इस अष्टदल कमल की अपनी श्रद्धानुसार पूजा-अर्चना करें, इस पर कोई विग्रह, यंत्र अथवा अन्य कोई प्रतिष्ठित मूर्ती, चित्रादि रखकर चारों तरफ से ढक दें। जैसा भी निर्माण कार्य हो रहा हो, वह इसके बाद प्रारम्भ करवाएं। वास्तु निवारण का यह एक अचूक प्रयोग सिद्ध होगा।

प्रयोग 7.

पुष्य नक्षत्र में जड़ सहित चिरचिटे का एक पौधा उखाड़ लाएं। भवन में कहीं भी गड्ढा खोदकर इस पौधे को इस प्रकारासे दबा दें कि पत्तियॉ नीचे रहें और जड़ वाला भाग ऊपर। बद्नजर, किसी के कुछ करे-धरे का दुष्प्रभाव आदि में यह प्रयोग रामबांण सा सिद्ध होगा।

मानसश्री गोपाल राजू (वैज्ञानिक)

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