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कीलन तंत्र से बनायें सुरक्षा कवच
भवन की, कार्य स्थल आदि की अथवा व्यक्ति की रक्षा के लिए अनंत काल से रक्षा सूत्र, रक्षा कवच, रक्षा रेखा, रक्षा यंत्र आदि का चलन देखा जाता है। यह सदैव दुर्भिक्षों, अनहोनी घटनाओं, कुदृष्टि, मारण, उच्चाटन, विद्वेषण आदि तांत्रिक प्रयोगों से गुप्त रूप से सुरक्षा का कार्य करते रहे हैं, ऐसी मान्यता है। इस रक्षा-सुरक्षा क्रम-उपक्रम में ही कीलने अथवा कीलन का चलन भी प्रायः देखने को मिलता है। विषय के विद्वान स्थान को भांति-भांति की कीलों से तंत्र क्रियाओं द्वारा कील देते हैं अर्थात् एक सुरक्षा कवच स्थापित कर देते हैं।
कीलन सुरक्षा की दृष्टि से तो किया ही जाता है परन्तु इसके विपरीत ईर्ष्या-द्वेष, अनहित की भावना, शत्रुवत व्यवहार आदि के चलते भी स्थान का कीलन कर दिया जाता है। फलस्वरूप उस स्थान को दुर्भाग्य घेरने लगता है और वहाँ से सुख, शांति, सम्पन्नता और प्रसन्नता का कीलन के दुष्प्रभाव स्वरूप पलायन होने लगता है। स्वार्थ वश किये गये इन दुष्परिणामों का सरलता से निदान भी नहीं मिल पाता।
कोई ज्ञानी व्यक्ति जो केवल निःस्वार्थ भाव रखता है, कीलन का स्थान पता करके उसके प्रभाव को नष्ट कर सकता है। सुरक्षा की दृष्टि से किये गये कुछ प्रयोग पाठकों के लाभार्थ प्रस्तुत कर रहा हूँ, निःस्वार्थ भाव से लाभ उठायें।
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